जीना भी एक कला है
आज मनुष्य को जीना कहाँ आता है? जीना भी एक कला है। सब आदमी खाते हैं, पीते हैं, सोते हैं और मौत के मुँह में चले जाते हैं, किन्तु जीना नहीं जानते। जीना बड़ी शानदार चीज है। इसको संजीवनी विद्या कहते हैं- जीवन जीने की कला। यहाँ हम अपने विश्वविद्यालय में, शांतिकुंज में जीवन जीने की कला सिखाते हैं और यह सिखाते हैं कि आज के गए- बीते जमाने में आप अपनी नाव पार करने के साथ- साथ सैकड़ों आदमियों को बिठाकर पार किस तरह से लगा पाते हैं? (वाङमय- ६८)
शांतिकुंज धर्मशाला नहीं है। यह कॉलेज है, विश्वविद्यालय है। कायाकल्प के लिए बनी एक अकादमी है। हमारे सतयुगी सपनों का महल है। आपमें जिन्हें आदमी बनना हो, बनाना हो, इस विद्यालय की संजीवनी विद्या सीखने के लिए आमंत्रण है। कैसे जीवन को ऊँचा उठाया जाता है, समाज की समस्याओं को कैसे हल किया जाता है? यह आप लोगों को सिखाया जाएगा। दावत है आप सबको। आप सबमें जो विचारशील हों, भावनाशील हों, हमारे इस कार्यक्रम का लाभ उठाएँ। अपने को धन्य बनाएँ और हमको भी।