हमारे जीवन से कुछ सीखें
हमारी
कितनी रातें सिसकते बीती हैं, कितनी बार हम बालकों की तरह
बिलख- बिलख कर, फूट- फूट कर रोये हैं। इसे कोई कहाँ जानता है? लोग
हमें संत, सिद्ध, ज्ञानी मानते हैं। कोई लेखक, विद्वान, वक्ता, नेता
समझते हैं, पर किसने हमारा अन्तःकरण खोलकर पढ़ा, समझा है? कोई उसे
देख सका होता, तो उसे मानवीय व्यथा- वेदना की अनुभूतियों की करुण
कराह से हाहाकार करती एक उद्विग्न आत्मा भर इन हड्डियों के
ढाँचे में बैठी- बिलखती दिखाई पड़ती।’’
‘‘अपने
अनन्य आत्मीय प्रज्ञा- परिजनों में से प्रत्येक के नाम हमारी
यही वसीयत और विरासत है कि हमारे जीवन से कुछ सीखें। कदमों की
यथार्थता खोजें, सफलता जाँचें और जिससे जितना बन पड़े अनुकरण का,
अनुगमन का प्रयास करें।’’
‘‘प्यार, प्यार, प्यार यही हमारा मंत्र है। आत्मीयता, ममता, स्नेह और श्रद्धा यही हमारी उपासना आत्मीयता के विस्तार का नाम ही अध्यात्म है।’’
‘‘मेरे विचारों में- मेरे साहित्य में, मेरी इच्छाओं को ढूँढ़ो।
उन शिक्षाओं का अनुसरण करो जो मेरे गुरु ने मुझे दी थीं और
जिसे मैंने तुम्हें दिया है। सदैव अपनी दृष्टि लक्ष्य पर स्थिर
रखो। अपने मन को मेरे विचारों से परिपूर्ण कर लो। मेरी इच्छा और
विचारों के प्रति जागरूकता, स्थिरता और भक्ति में ही शिष्यत्व है।’’ - पं. श्रीराम शर्मा आचार्य